इन हालात मेंं मुबाशिरत नहीं करना चाहिए :
माहवारी के वक्त मुबाशिरत नहीं की जाये । माहवारी के वक्त में मुबाशिरत करना जिस्मानी तबाही व बरबादी का सबब है इसलिए इन दिनों में न मिलें । क्योंकि इस खून में जहरीलापन होता है जिससे बडी पेचीदा और खतरनाक बीमारीयांं पैदा होती है । माहवारी के दिनों में मुबाशिरत करने से खारिश, नामर्र्दी, शर्मगाह और उसके मुंह पर जलन (सोजाक) , जिरयान होता है और जो बच्चा पैदा होता है उसके जिस्म की बाहरी जिल्द पर जख्म बन जाते है और उन जख्मों से पानी रिसता रहता है ।
माहवारी वाली औरत को अक्सर खून बहता रहता है और बच्चेदानी बाहर निकल आती है और कभी – कभी कुछ औरतों को हमल गिरने की बामारी लग जाती है और कभी – कभी कुछ औरतों को हमल गिरने की बीमारी लग जाती है ओर बच्चेदानी कमजोर होत जाती है और मुख्तलिफ किस्म की खतरनाक बीमारीयोंं मे फंस जाती है ।
माहवारी का खून अंदर की नापाकी और गंजगी को बाहर निकालता है। यह अमल कुदरती तौर पर होती है इस मोहवारी के खून मे जहरीलापन और तेजाबियत होती है और औरत की शर्मगाह का मिजाज इन दिनों में मामूली न रह कर गर्म हो जाता है । औरत जब तक नापाकी से पाक न हो बेहतर है कि जब तक नहा न ले उससे मुबाशिरत न करें । ज्यादा काम-काज मे घिरे होने पर नींद के ज्यादा आने के वक्त ज्यादा थके हुए होने के वक्त रंजो-गम खौफ और अंदेशे के वक्त, नशे के वक्त, पेशाब या पाखाना लगते वक्त, इन तमाम वक्तों में मुबाशिरत नही करना चाहिए ।
बिलकुल पेट भरा होने पर और बिलकुल पेट खाली होने पर मुबाशिरत न करे । भरे पेट मुबाशिरत करने से आंतों और मेदे पर सूजन आ जाती है दानिशवरों ने कहा है कि भरे पेट पर मुबाशिरत करने से शुगर की बीमारी पैदा हो जाती है और शरीर को कमजोर बना देती है बिलकुल खाली पेट भी मुबाशिरत करना भी खतरनाक है इसलिए की मनी निकलने के बाद फोते अनी खुराक गुर्दो से मांगते है और गुर्दे अपनी गिजा जिगर से मांगते है और जिगर अपनी खुराक मेदे से मांगता है लिहाजा भूख की हालत में मेदे के बिलकूल खाली होने की वजह से बुढापा, टिबी दिल घबराना आंखो की कमजोरी वगैरह बीमारियोंं का खतरा बढ जाता है ।
बीमारी से फायदा होने के बाद जबकि कमजोरी अभी बाकी हो तब भी मुबाशिरत न करें । बेचैनी और परेशानी व घबराहट के वक्त भी मुबाशिरत नही करना चाहिए । पागल या दिवानेपन की हालत में मिर्गी की बिमारी वाले, टिबी के मरीज, दिल के मर्ज में मुब्तला (फंसा हुआ) को भी मुबाशिरत नहीं करना चाहिए । ज्यादा दिमागी मेहनत करने वाले और वे जिनको आंखो की कमजोरी, जिस्मानी कमजोरी और जिनको मेदे व जिगर की कमजोरी हो उनको भी मुबाशिरत करने से नुकसान होता है ।
बवासीर के मरीज आतशक सोजाक के मरीज को भी मुबाशिरत से बचना चाहिए । ताउâन और गंदी हवाओं के चलते वक्त भी मुबाशिरत से बचें। अक्लमंदो ने कहा है कि जो आदमी चांद की ग्यारह तारीख को मुबाशिरत करता है वह अपनी जिंंदगी को कम करता है । बुजुर्गो ने फरमाया है कि चांद की पहली रात और दर्मियानी रात और बिलकुल आखिरी रात यानी महिने के खत्म की रात को मुबाशिरत न की जाऐ क्योकि इन मौकों पर शैतान मौजूद होते है और कुछ बुजुर्गो ने फरमाया है कि इन तीनों रातों में शैतान मुबाशिरत किया करते है और यह कि इन रातों में मुबाशिरत करने से जो औलाद पैदा होती है वह लागर (कमजोर) नाकिस अजाअ वाली पैदा होती है बालिग होने से पहले अगर हमल ठहर गया तो वह औलाद भी बीमार पैदा होती है ।
रात शुरु में मुबाशिरत करने से जो औलाद पैदा होगी उसकी उम्र्र बहुत थोडी होती है रात के आखिरी हिस्सा में मुबाशिरत करने से जो औलाद पैदा होती है वह तंदुरुस्त व ताकतवर पैदा होती है ।
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